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हमसफ़र 15 पॉर्ट सीरीज पॉर्ट - 7




हमसफ़र (भाग - 7) 



अगले दिन वीणा के पिता वीरेंद्र को लेकर सुमित के घर जाते हैं। उन लोगों ने बहुत खुश होकर इनका स्वागत किया और बातचीत के मध्य महेंद्र जी ने वीणा की इच्छा उन लोगों को बता दी l सुमित के पिता ने कहा -  "अभी सुमित और उसके भैया दोनों घर में नहीं है हम लोग आपस में बात करके आपसे बात कर लेंगे। महेंद्र जी वापस आ गए।

  शरद पूर्णिमा के दिन फिर से एक बार सुमित का परिवार वीणा के घर में था। इस बार भी सुमित ने ही फोन किया था वीरेन को और कहा था कि वो परिवार सहित शाम को उन लोगों से मिलने आ रहा है। पूरा परिवार उनके स्वागत की तैयारियां करके उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।




   वे लोग नियत समय पर आ गये। सुमित के पापा ने वीणा के पापा को गले से लगाया और कहा -  "हम लोग संबंधी बने या नहीं बने मित्र तो बन ही सकते हैं। इसलिए हम लोग गले ही मिलेंगे"।




   सुमित की मां, भाभी और भैया भी सबसे प्रेम से मिले। इसके बाद सब बैठे और बातें करने लगे साथ में चाय नाश्ता भी चलता रहा।



सुमित के पापा ने इस बार सीधा संबोधित किया वीणा को और कहा  - 




 "देखो बिटिया हम लोगों ने तुम्हारी बात पर गहन विमर्श किया और हमने निर्णय लिया कि तुम बहुत समझदार हो इसलिये तुम जो निर्णय ले रही हो उसमें हमें तुम्हारा सहयोग करना चाहिए। तुम बी एड कर लो। b.Ed के बाद तुम्हारी नौकरी तो लग ही जाएगी उसके बाद भी यदि तुम सिविल सर्विस की तैयारी करना चाहती हो तो तैयारी करो। तुम्हें वह तैयारी हम करवाएंगे। आज से तुम सिर्फ अपनी पढ़ाई की चिंता करो और पढ़ाई के खर्चे की बात हमारे ऊपर छोड़ दो। और हां तुम्हारी यदि कोइ और समस्या है, या तुम किसी और को पसंद करती हो तो स्पष्ट कहो, हम तुम्हारे साथ कोई भी जबरदस्ती नहीं करेंगे। परंतु यदि बात सिर्फ तुम्हारी पढ़ाई   और नौकरी की है,किसी काबिल बनने की है; तो उसमें हम तुम्हारा पूर्ण सहयोग करेंगे। और तुम दोनों की शादी भी तभी होगी जब तुम कहोगी कि अब तुम शादी के लिए तैयार हो। अब तुम अपनी बात  कहो स्पष्ट रूप से। मैं तुम्हें एक बात और स्पष्ट रूप से बता दूं कि मैंने जो भी कहा है इसमें मेरे दोनों बेटे की,उनकी मां की और मेरी बहू की भी सहमति है। अर्थात आवाज मेरी थी परंतु फैसला हम सभी का था। अब तुम मुझे कहो तुम क्या चाहती हो"। 




  वीणा नजरें झुकाए चुप रही। सुमित की मां ने कहा   -  "बिटिया तुम्हारी खामोशी को तुम्हारी लज्जाशीलता समझूँ या तुम्हारा इनकार"। वीणा ने अपने माता-पिता की ओर देखा तो उसके पिता ने कहा - 




    "यदि तुम्हें इनकार हो तो उठ कर चली जाओ यहां से और यदि रिश्ता स्वीकार है तो उठ कर सभी बड़ों का चरण स्पर्श करो। मैं समझ रहा हूं तुम शर्मा भी रही हो पर इतना करने में तो कोई बुराई नहीं है"।




   वीणा उठी और सुमित के माता-पिता को प्रणाम किया, फिर दोनों भैया-भाभी को भी प्रणाम किया और मां के पास आकर उसके आंचल में अपना चेहरा छुपा लिया। सुमित की भाभी नेहा ने आकर वीणा को खींच कर अपने गले लगा लिया और कहा–




   "अरे देवरानी जी अभी इतना शर्माओगी तो शादी के समय क्या करोगी। कुछ शर्म बचा कर रखो उस समय के लिए"।




और उसे लिए उसके कमरे में चली गई। सुमित की मा ने एक बैग माधुरी के हाथ में  देकर कहा -  "बहन जी इसमें वीणा के लिए  कुछ जेवर और कपड़े हैं आप उसे बोलिए पहनने के लिए। हम लोग रोका अभी कर लेंगे। शादी तो जब वीणा कहेगी तभी होगी। और उसे अपने मुंह से ही बोलना होगा कि वह तैयार है। हम कभी नहीं पूछेंगे उससे। और हम लोग हमेशा शादी करने के लिए तैयार हैं। जब  वीणा बोल देगी तभी शादी होगी। एक बात और, आज के बाद आप वीणा की कोई चिंता मत कीजिए। उसकी शिक्षा में जो भी खर्च होगा वह हमारा होगा। अगर वह सिविल सर्विस के लिए तैयारी करेगी तो जहां जाकर भी तैयारी करेगी वहां का हॉस्टल का खर्चा पढ़ाई का खर्चा हम करेंगे। अब वह हमारी बहू है, और आपके पास वह हमारी अमानत है। इसलिए आप उस पर ख़र्च करने से हमें रोकेंगे नहीं"।

  वीणा के माता-पिता तो ऐसा परिवार पाकर अपने को भाग्यशाली समझ रहे थे। उनकी बेटी के लिए घर बैठे इतना अच्छा परिवार मिल गया है।




माधुरी पैकेट लेकर अंदर गई और नेहा को देकर बोली -  "बिटिया लो तैयार कर दो"।




   और उसी दिन वीणा और सुमित की शादी तय हो गई साथ ही रोका भी हो गया। घर वापस जाने के पहले सुमित ने कहा  -

    "वीणा क्या मैं बात कर सकता हूं तुमसे थोड़ी देर। अपना दस मिनट दोगी मुझे"?




  वीणा ने कहा -  "जी बोलिए क्या कहना है"।




सुमित -  "तुम यह कभी नहीं सोचना कि हमारी ओर से तुम्हारे साथ कभी भी कोई  जबरदस्ती होगी। तुम्हारी जो इच्छा होगी तुम निःसंकोच कहना। जब तुम्हारे पापा जाकर तुम्हारी इच्छा घर में बता कर आए तो पिताजी ने भैया और मुझे पूछा। हम सभी से राय जाननी चाही। भैया ने तो स्पष्ट कहा  "राय सुमित की जानिए क्योंकि शादी तो सुमित को करनी है"। तब मैंने ही कहा था जिस दिन तुम कहोगी शादी करने के लिए उसी दिन करूंगा शादी। और जब तक तुम पढ़ना चाहोगी मैं तुम्हें पढ़ने दूंगा। तुम चाहो तो B.Ed करने के बाद नौकरी ज्वाइन कर लो। चाहो तो पीसीएस की तैयारी के लिए दिल्ली जाकर कोचिंग करना। मैं हर बात में तैयार हूं ।हर कदम पर तुम्हारे साथ हूं। आज से हम दोनों मानसिक रूप से पति पत्नी हैं, इसलिए तुम्हारी हर जिम्मेवारी मेरी जिम्मेवारी है। तुम मेरी जिम्मेवारी हो इसलिए कभी भी किसी भी चीज की जरूरत हो, कोई भी परेशानी हो तो तुम नि:संकोच मुझसे कहना। अपनी किसी भी समस्या के लिए अब अपने पापा को परेशान मत करना। चलो फिलहाल तो तुम भी बी एड करो, मैं भी करूंगा। वैसे तुम भी जानती हो मैं बी एड कर रहा हूं शौकिया। हो सकता है मैं स्कूल खोल लूँ; परंतु मैं किसी स्कूल में जाकर नौकरी नहीं करूंगा। मैं व्यवसाय ही करूंगा। इसलिए मैं चाहता हूं तुम  भी अपनी इच्छा पूरी करो। क्या तुम मुझसे सहमत हो"|




   मीना  -  " जी मैं सहमत हूं"।




  सुमित  - "अरे यह जी-जी क्या करना शुरू कर दी  तुम्हारी वह बेबाक बोली कहां चली गई। वैसी जब ट्रेन में तुमने किसी को अपनी ओर घूरते देखकर उसकी जमकर क्लास लगाई थी। और उसे अपनी सीट छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया था।




   वीणा  - " यह आपने देखा था क्या"? 




सुमित  -  " देखा था, और उसी खाली सीट में आकर मैं अजय के साथ बैठ गया था। और हमें बैठा देखकर तुमने ऐसा मुंह बनाया जैसे तुम्हारे मुंह में किसी ने जबरन निबोरी डाल दी हो। तुम्हारे उसी व्यवहार, साहस, और बेबाकी पर तो मैं तुम से प्रभावित हो गया था। और तभी मैंने एक निर्णय कर लिया था। ईश्वर से प्रार्थना भी की थी कि ईश्वर मेरा साथ देना,यही लड़की मेरी सहधर्मिणी बने। मैं तब से रोज यही प्रार्थना करता हूँ। आस्तिक बन गया हूं मैं। सुबह उठने के बाद और रात सोने से पहले एक बार ईश्वर से तुम्हारे और अपने लिए प्रार्थना करता हूं"।


                                      क्रमशः

  निर्मला कर्ण

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4 Comments

Harsh jain

04-Jun-2023 02:03 PM

Nice 👍🏼

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Alka jain

04-Jun-2023 12:51 PM

V nice 👍🏼

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वानी

01-Jun-2023 06:58 AM

Nice

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